Saturday 28 February 2015
मंा
की मंा यानि नानी
बस यही
पहचान नहीं मोहताज नाम की
एक रिश्ता
सबसे बडा बूढा और शायद अपने अन्त
पर
ल्ेकिन
सबसे प्यारा प्रेम से परिपूर्ण
इतना
की दिल भर आता है नानी बोलते ही
मंा
की सबसे बडी चिन्तक प्रेम करने वाली
लेकिन
सबसे ज्यादा उपेक्षित मंा के साथ के लिए
दोनों
का रिश्ता इस कदर लगे अधूरे हैं अलग अलग
लेकिन
सच्चाई है अधूरा रहना और ये ही अन्त
भूल
नहीं सकता वो नानी का प्यार
मेरी
मंा की लिए कहीं ज्यादा मेरे लिए
नानी
कहॅंा होगी पर जरूर अकेली होगी ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
लॉक डाउन
कुछ ही दिन तो हुए लॉक डाउन के लगा जैसे अर्सा हुआ बाहर निकले अब तो रूह सी फड़फड़ा रही है दिन निकल जाता है बिस्तर पर ये सोचते कि जल्द निकाल...
-
तस्वीर खयालों में उसके आ रही होगी मैं जो लिख रहा हूंॅ वो गा रही होगी । जुबंा पे उसको मेरी भरोसा न रहा वजह कोई मेरी आ-वो-हवा रह...
-
जा रही थी वो हमेशा के लिए मुझसे दूर शादी थी उसकी मैं चुप था हमेशा की तरह जाने किसका लिहाज जाने कैसा डर बहुत दुखी परेशान खड़ा था...
-
अधूरी कविता कविता लिखी एक चिड़िया की , बचपन की यादो की, कल की जो सुकूँ देता है उस कल की भी जो सुकूँ देगा अहसासों की भी जो पले बढ़े म...
No comments:
Post a Comment