Thursday 15 March 2018




जा रही थी वो
हमेशा के लिए
मुझसे दूर
शादी थी उसकी
मैं चुप था
हमेशा की तरह
जाने किसका लिहाज
जाने कैसा डर
बहुत दुखी
परेशान
खड़ा था चौराहे पर
देख रहा था
उसे जाते हुए
परिवार के साथ
कही दूर
जहाँ उसकी शादी थी
गाडी में बैठी वो
बेबस और दुखी
मुझे देख रही थी
वो शायद आखिरी पल
और ताउम्र बिछडन
चले गए वो
लगभग शून्य था मैं
बस की गिरने ही वाला
रोक न पाया और अचानक
भाग चला
जितनी तेजी से
भाग सकता था
बिना देखे बिना सोचे
रस्ते में लोग मिले
पर उनका कोई लिहाज नहीं आज
बस रोये जा रहा था 
वो सब मिले
जिनसे मैं डरता रहा
कुछ बोलना था उनसे
पर बस चिल्लाता
और रोता
शायद सब समझते थे वो
या कुछ भी नहीं
वो मूक और नकाब पहने
भाव शून्य चेहरों से देखते
और आगे बढ़ जाते
कुछ पलों में लगा
जैसे सैकड़ो से मिला
जिनसे मुझे फर्क पड़ता था
पर उन्हें
कोई फर्क न पड़ा
और फिर में कही था
शायद वो मेरा घर था
वो सभी थे
जो अपने थे
जैसे इंतजार था उन्हें
मेरा
मैं लिपट गया
बारी बारी
रिरियाने लगा
रोक लें उसे
जा रही है वो
हमेशा के लिए
अफ़सोस
और हतप्रभ भी
वो ही भाव शून्यता देखकर जो
उन सेकड़ो लोगों पर थी
अचानक
सब गायब
सब कुछ
न लोग न घर
मैं अकेला केवल अकेला
और फिर लगा
जैसे उड़ रहा  हूँ
या की गिर रहा हूँ
चिल्लाया
और लगभग हांफते हुए
मेरी नींद खुली
लाइट बंद थी
बिस्तर पर पड़ा था
मोबाइल देखा
रात के ढाई बजे थे
एक लम्बी गहरी  सांस ली
गला सूखा था
सर्दी भी लग रही थी
खिड़की के बाहर  कूलर में
कबूतर के बच्चो की खटपट
सुकून दे रही थी
की मैं अकेला नहीं था
बहुत स्याह रात थी
साढ़े पांच बज गए
खुद को भरोसा दिलाने में
की ये केवल स्वप्न था
भयावह स्वप्न।










1 comment:

  1. शुभ प्रभात
    वाह..
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    सादर

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