Wednesday 13 November 2019

वो एक रात

वो एक रात
जो नींद की नहीं होती
ना ही चैन की 
पल भर शांत
फिर से बेचैन सी 
जिसमें होती हैं 
सपने, ख्वाहिश, यादें 
खुद से खुद की बातें 
मन बस कुछ गुनगुनाता है 
कभी कविता बनाता है 
कभी गाना सुनाता है 
कभी गुलजार कभी जावेद 
कभी ग़ालिब को सुनता है 
नए शब्दों को दिल की 
आह के धागे में बुनता है 
वो एक रात 
बहुत छोटी लगती है 
जीने के लिए 
पर जिंदगी को देती है 
एक नयी सुबह 
वो एक रात 
जो कभी आती थी 
हर पांच सात दिन बाद 
अब इंतजार कराती है 
महीनों तक 
अब तो 
कई महीने हो जाते हैं 
डर लगता है 
कहीं सालों बाद ना आने लगे 
फिर तो 
कितनी सी रही होंगी 
ऐसी रातें 
मेरे हिस्से में 
वो एक रात... 



Sunday 21 July 2019

कि जब ख्वाहिशें मेरी नींदे उड़ाती हैं
कि जब हौले से कोई मेरे अन्दर गुनगुनाती है
कि जब देखकर सपने रात को मैं जाग उठता हूँ
कि जब डायरियों के सूखे पन्नों को पलटता हूँ
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब मंजिलों और रास्तों को भूल जाता हूँ
कहना तो कुछ और ही था कुछ बोल जाता हूँ
कि जब हिचकियाँ मुसलसल मुझको सताती हैं
जब कुछ छूटने और टूटने की बात आती है
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब भी साँस लेता हूँ कुछ तो छूट जाता है
जिंदगी का कोई कमजोर धागा टूट जाता है
कोई ठहरा हुआ सा पल हमेशा छूट जाता है
मुझसे हमेशा कोई मुझमें रूठ जाता है
तब मुझे तुम याद आते हो l

लॉक डाउन

कुछ ही दिन तो हुए लॉक डाउन के लगा जैसे अर्सा हुआ बाहर निकले  अब तो रूह सी फड़फड़ा रही है  दिन निकल जाता है बिस्तर पर  ये सोचते कि जल्द निकाल...