Wednesday 13 November 2019

वो एक रात

वो एक रात
जो नींद की नहीं होती
ना ही चैन की 
पल भर शांत
फिर से बेचैन सी 
जिसमें होती हैं 
सपने, ख्वाहिश, यादें 
खुद से खुद की बातें 
मन बस कुछ गुनगुनाता है 
कभी कविता बनाता है 
कभी गाना सुनाता है 
कभी गुलजार कभी जावेद 
कभी ग़ालिब को सुनता है 
नए शब्दों को दिल की 
आह के धागे में बुनता है 
वो एक रात 
बहुत छोटी लगती है 
जीने के लिए 
पर जिंदगी को देती है 
एक नयी सुबह 
वो एक रात 
जो कभी आती थी 
हर पांच सात दिन बाद 
अब इंतजार कराती है 
महीनों तक 
अब तो 
कई महीने हो जाते हैं 
डर लगता है 
कहीं सालों बाद ना आने लगे 
फिर तो 
कितनी सी रही होंगी 
ऐसी रातें 
मेरे हिस्से में 
वो एक रात... 



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