Thursday 2 April 2020

लॉक डाउन

कुछ ही दिन तो हुए लॉक डाउन के
लगा जैसे अर्सा हुआ बाहर निकले 
अब तो रूह सी फड़फड़ा रही है 
दिन निकल जाता है बिस्तर पर 
ये सोचते कि जल्द निकालूँगा 
यहां जाऊँगा वहाँ जाऊँगा 
ये करूंगा वो करूंगा 
आज खयाल आया 
कैसे रहते हैं वो 
तमाम उम्र निकलती है जिनकी 
लॉक डाउन में 
हर गाँव में, हर कस्बे में 
हर शहर में, हर घर में 
कोई ना कोई रहता ही है 
इन बंदिशों में 
ना उन्हें अह्सास रहता है 
या आदत पड़ जाती है 
ना हम चाहते हैं 
उन्हें आशाएं देना 
कि बस कुछ दिन और बचे हैं. 


Wednesday 13 November 2019

वो एक रात

वो एक रात
जो नींद की नहीं होती
ना ही चैन की 
पल भर शांत
फिर से बेचैन सी 
जिसमें होती हैं 
सपने, ख्वाहिश, यादें 
खुद से खुद की बातें 
मन बस कुछ गुनगुनाता है 
कभी कविता बनाता है 
कभी गाना सुनाता है 
कभी गुलजार कभी जावेद 
कभी ग़ालिब को सुनता है 
नए शब्दों को दिल की 
आह के धागे में बुनता है 
वो एक रात 
बहुत छोटी लगती है 
जीने के लिए 
पर जिंदगी को देती है 
एक नयी सुबह 
वो एक रात 
जो कभी आती थी 
हर पांच सात दिन बाद 
अब इंतजार कराती है 
महीनों तक 
अब तो 
कई महीने हो जाते हैं 
डर लगता है 
कहीं सालों बाद ना आने लगे 
फिर तो 
कितनी सी रही होंगी 
ऐसी रातें 
मेरे हिस्से में 
वो एक रात... 



Sunday 21 July 2019

कि जब ख्वाहिशें मेरी नींदे उड़ाती हैं
कि जब हौले से कोई मेरे अन्दर गुनगुनाती है
कि जब देखकर सपने रात को मैं जाग उठता हूँ
कि जब डायरियों के सूखे पन्नों को पलटता हूँ
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब मंजिलों और रास्तों को भूल जाता हूँ
कहना तो कुछ और ही था कुछ बोल जाता हूँ
कि जब हिचकियाँ मुसलसल मुझको सताती हैं
जब कुछ छूटने और टूटने की बात आती है
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब भी साँस लेता हूँ कुछ तो छूट जाता है
जिंदगी का कोई कमजोर धागा टूट जाता है
कोई ठहरा हुआ सा पल हमेशा छूट जाता है
मुझसे हमेशा कोई मुझमें रूठ जाता है
तब मुझे तुम याद आते हो l

Saturday 24 November 2018

दिल का OUTBOX : मन नहीं करता....

दिल का OUTBOX : मन नहीं करता....:    मन नहीं करता प्यार में गोते खाने का अब , मन नहीं करता।  दिल से सोचे जाने का अब, मन नहीं करता।। जब से माशूका घर में, बीबी ...

Wednesday 21 November 2018

ये सच नहीं..


ये सच नहीं 


ये सच नहीं
कि जिंदगी फिल्मों जैसी होती है
जिसका अंत सुखद होता है
कौन अच्छा है कौन बुरा
ये सब पता होता है
सही गलत के बीच
साफ़ नजर आती है
एक चौड़ी दरार
महसूस होते हैं
सभी किरदारों के भाव
गुस्सा होता है
गलत किरदार के लिए
उबल-उबल के निकलती है
इंसानियत, प्रेम, स्नेह, दया
जो नहीं बंधा होता
दायरों में
न धर्म, न जाति
न किसी भेदभाव
बस चाहिए होती है
सत्य की जीत
प्रेम और इंसानियत का बजूद
कितने नरम दिल हैं हम...

पर ये सच नहीं है
असल में, कहाँ है ऐसा
नजर आते हैं सब
किसी भ्रम में पड़े
कि क्या सही क्या गलत
सब पहनते हैं एक चश्मा
जो असल दिखाता ही नहीं

कि कोई दरार नहीं होती
सही गलत के बीच
सब इसका फैसला करते हैं
अपनी सहूलियत से
कोई मायने नहीं
इंसानी जज्बातों के
तभी तो लटके मिलते हैं लोग
पेड़ो से
कट जाते हैं
पटरियों पे

इंसानियत और हैवानियत के बीच भी
कोई दरार नहीं
लोग भावुक तक नहीं होते
मौत पे भी
उन्हें बस चाहिए होता है
एक अंत
अपनी सोच के मुताबिक
चाहे सही किरदार
मर क्यों न जाये

उन्हें डर नहीं कि
कोई देख रहा है
और उबल रहा है
क्यों कि सभी लगे हैं
अपने हिसाब से
अंत लिखने में
ये सच नहीं
कि जिंदगी फिल्मों जैसी होती है
जिसका अंत सुखद होता है।





Saturday 3 November 2018

मन नहीं करता....


  मन नहीं करता


प्यार में गोते खाने का अब , मन नहीं करता। 
दिल से सोचे जाने का अब, मन नहीं करता।।

जब से माशूका घर में, बीबी बनके आई है। 
कसमें वादे खाने का अब ,मन नहीं करता।।

ठंडी - ठंडी लम्बी रातें, अलसाई सी सुबह हुई। 
अब हर रोज नहाने का, मन नहीं करता।।

मुफ्त में राशन मिल जाये, तो हम भी जोगी बन जायें। 
मेहनत करके खाने का अब ,मन नहीं करता।।

जात-पात मतभेद सब, मयखानों ने तोड़ दी। 
मंदिर-मस्जिद जाने का अब , मन नहीं करता।।

अनूप जलोटा के भजनों का, ऐसा जादू छाया है। 
फ़िल्मी गाने गाने का अब ,मन नहीं करता।।

भीड़-भाड़ ये शोर शराबा, चौराहे और तंग गलियां। 
दिल्ली छोड़के जाने का अब ,मन नहीं करता।।




Sunday 13 May 2018




मैं जकड़ा हुआ हूँ 
जब भी कुछ अलग करना हो 
या नया 
फिजूल  शख्स दिखते हैं 
कि बे क्या कहेंगे 
मैं आज़ाद नहीं हूँ 
 मैं जकड़ा हुआ हूँ। 




लॉक डाउन

कुछ ही दिन तो हुए लॉक डाउन के लगा जैसे अर्सा हुआ बाहर निकले  अब तो रूह सी फड़फड़ा रही है  दिन निकल जाता है बिस्तर पर  ये सोचते कि जल्द निकाल...