कि जब ख्वाहिशें मेरी नींदे उड़ाती हैं
कि जब हौले से कोई मेरे अन्दर गुनगुनाती है
कि जब देखकर सपने रात को मैं जाग उठता हूँ
कि जब डायरियों के सूखे पन्नों को पलटता हूँ
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब मंजिलों और रास्तों को भूल जाता हूँ
कहना तो कुछ और ही था कुछ बोल जाता हूँ
कि जब हिचकियाँ मुसलसल मुझको सताती हैं
जब कुछ छूटने और टूटने की बात आती है
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब भी साँस लेता हूँ कुछ तो छूट जाता है
जिंदगी का कोई कमजोर धागा टूट जाता है
कोई ठहरा हुआ सा पल हमेशा छूट जाता है
मुझसे हमेशा कोई मुझमें रूठ जाता है
तब मुझे तुम याद आते हो l
Sunday 21 July 2019
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