Sunday 21 July 2019

कि जब ख्वाहिशें मेरी नींदे उड़ाती हैं
कि जब हौले से कोई मेरे अन्दर गुनगुनाती है
कि जब देखकर सपने रात को मैं जाग उठता हूँ
कि जब डायरियों के सूखे पन्नों को पलटता हूँ
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब मंजिलों और रास्तों को भूल जाता हूँ
कहना तो कुछ और ही था कुछ बोल जाता हूँ
कि जब हिचकियाँ मुसलसल मुझको सताती हैं
जब कुछ छूटने और टूटने की बात आती है
मुझे तुम याद आते हो l
मैं जब भी साँस लेता हूँ कुछ तो छूट जाता है
जिंदगी का कोई कमजोर धागा टूट जाता है
कोई ठहरा हुआ सा पल हमेशा छूट जाता है
मुझसे हमेशा कोई मुझमें रूठ जाता है
तब मुझे तुम याद आते हो l

लॉक डाउन

कुछ ही दिन तो हुए लॉक डाउन के लगा जैसे अर्सा हुआ बाहर निकले  अब तो रूह सी फड़फड़ा रही है  दिन निकल जाता है बिस्तर पर  ये सोचते कि जल्द निकाल...