Thursday 22 January 2015

बचपन

वो कागज की कश्ती वो बारिश की मस्ती
बूंदों की रिमझिम वो ख्वाबों की बस्ती
ठहर जाता हर पल नजारा लिये ये
पर न रहता कभी एक उम्र और मौसम
अभी कुछ अधूरा है वो प्यारा बचपन
चंदा को देखा तो उंगली उठाई
तितली को देखा तो ताली बजाई
तमन्ना लिये हजारों ख्वाहिशों की
मंा की गोद में अंाखों को कर बंद
अभी कुछ अधूरा है वो प्यारा बचपन
खिलोैनों से मिटृटी की दुनिया रचाना
रूठना किसी से किसी को मनाना
दिल में न शिकवा शिकायत किसी की
खुशियों से भरा था वो घर का अंागन
अभी कुछ अधूरा है वो प्यारा बचपन
तपती दोपहरी में पतंगें उडाना
छिप छिपके घर से वो कंचे लडाना
टीचर से होमवर्क पर बहाने बनाना
पापा की डंाट और फिर मंा का मरहम
अभी कुछ अधूरा है वो प्यारा बचपन ।।


वो बचपन अधूरा जो फिर से जियो
उन प्यारे से सपनों को फिर से सियो
जिन्दगी से मिलो और बचपन में खो जाओ
इतना हंॅसो कि हंॅसते हॅंसते रो जाओ
उन अंासुओं में सारी नीरसता वह जाऐगी
और वो बचपन की खुशी चेहरे पे रह जाऐगी
फिर पेड की छंाव में तो सुनहरी घाम में
बारिश में बस्ती में बच्चों की मस्ती में
पतंग कंचs ताश में सुबह की गीली घास में
कहीं बाग में कहीं मेले में
कभी भीड तो कभी अकेले में
तुम जहंा भी चाहोगे
अपना बचपन महसूस कर पाओगे 

अपने वो पल फिर से जी पाओगे ।।

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